मनोविज्ञान का प्रभाव: कैसे छोटी-छोटी शब्दों और वाक्यों का दास हो रहा हमारा दिमाग और उसके प्रभाव

विरोध और विरोधियों का अस्तित्व हमेशा से हमारे बिच रहे हैं और भविष्य में भी रहेंगे जो समय-समय पर मानवता और प्रकृति को आघात पहुंचा कर ही अपने को संतुष्ट करने का प्रयास करते रहते हैं।
अपने इस कार्य को बल देने के लिए वे विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग करते रहे हैं और वर्तमान में उनका हथियार बना है मनोविज्ञान।
लोग अक्सर अज्ञानता बस कुछ तथ्यहीन वाक्यों को निगल जाते हैं और आगे चल कर वही झूठ दूसरों को भी परोसते रहते हैं।
सोशल मीडिया स्क्रॉल करते समय कई बार आपकी आँखों के सामने से कुछ पोस्ट को गुजरते देखा होगा जैसे “अगर पड़ोसी भूखा है तो मंदिर में प्रसाद चढ़ाना महापाप है”, …
लेकिन ऐसे वाक्य या इसके पीछे के तथ्य और सत्यता पर आपने शायद ही कभी विचार किया होगा, कोई व्यक्ति मंदिर में प्रसाद इतना भी ज्यादा नही चढ़ाता की उसी प्रसाद को वह अपने पड़ोसी को देदे तो उसका पेट भर जाए या वो संतुष्ट हो जाए।
मंदिर में या भगवान के नाम पर होने वाले भंडारे भगवान के नाम का होता है परन्तु उसे खाने वाले हम आम लोग ही होते हैं ना की भगवान। मंदिर में प्रसाद चढ़ाना बंद कर देने से पड़ोसी का पेट नही भरेगा, उसके लिए भोजन का प्रबंध करना पड़ता है।
जो लोग मंदिर में प्रसाद चढ़ाते हैं वो भूखे को भोजन कराने की मानसिकता भी रखते हैं। क्यूंकि धर्म और परोपकार साथ-साथ ही चलते हैं और चल सकते हैं, बगैर धर्म के परोपकार के अस्तित्व का होना असंभव है या फिर अधूरा।
हमारे भारत और पूरे विश्व में धर्म, रिलिजन, पंथ, और मजहब सभी को मानने वाले लोग रहते हैं पर ये सभी आपस में एक नहीं हैं क्यूंकि सबकी मान्यताएं एक जैसी नहीं हैं।
आप समाज में यह सर्वे कर सकते हैं की जितनी दान, मदत, और परोपकार हिन्दू करते हैं उसका अंश मात्र भी इस्लाम, ईसाई, और अन्य मान्यताओं के लोगों को करते नहीं देखा होगा।
लगभग हर दिन हमारे लिए उत्सव का दिन होता है क्यूंकि हमारे पर्व-त्यौहार और रीती ही इतने सारे हैं जब हम अपने साथ-साथ दूसरों का भी परोपकार करते हैं।
जब हम धर्म की बात करते हैं तो उसका मतलब एक ही होता सनातन हिन्दू धर्म जो ईश्वर के बनाये सभी नियमों और कानूनों का पालन करते हैं। यह मानवता, प्रकृतिरक्षण, और आध्यात्मिकता जैसे मूल्यों को ध्यान में रख कर बनाया गया है।
समय के साथ बढ़ती आशूरी शक्तियों के प्रभाव ने हमारे समाज में बहुत सी कुरीतियाँ डाल दीं हैं जिसे हमें चिन्हित कर बहार निकलने का निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
अशूर सिर्फ हमारे इतिहास और भूत में ही नहीं रहे हैं किन्तु हमारे वर्तमान में भी इनका अस्तित्व है। असुर से मतलब वे सभी जो सुर के विरोधी हैं, सुर का तात्पर्य; वे सभी जो धर्म संगत है।
जब हम असुर की बात करते हैं तो उनमे राजनेता से लेकर अन्य पदों पर बैठे व्यक्ति या सामान्य लोग तक सभी आते हैं जो धर्म विरोदी हैं या धर्म के विरोध में कार्य करते हैं।
