विचार
प्रकृति में हो रहे जानलेवा बदलाव

जब भले मानव अपने आँखों के सामने हो रहे अन्याय, प्रकृति के साथ छेड़-छार और महायंत्रों का अनुचित आविष्कार एवं प्रयोग के खिलाफ अपने दायुत्व का निर्वाहन नहीं करता तब प्रकृति अपनी भूमिका निभाती है फिर नुक्सान दोनों के होते हैं।
मनुस्मृति का उदघोष है, “महायंत्र प्रवर्तनम” अर्थात, विश्व का अगर विनाश करना हो तो महायंत्रो का प्रचुर आविष्कार और उपयोग किजिये!
प्रकृति, प्राकृतिक विप्लव और दैविये प्रक्रोप के जरिये सब ठीक करने में समर्थ है और ऐसा समय-समय पर होता भी रहा है। प्रकृति भगवान् की शक्ति है, प्रकृति के परिकर हैं: पृथ्वी, जल, तेज, वायु, और आकाश। आज ये सभी अपना संतुलन खोते जा रहे हैं।
- दिन और रात की गति अपने समय पर नहीं
- वर्षा अपने समय, गुणवत्ता, और मात्रा में नहीं हो रही
- फसलों की गुणवत्ता और उचित मात्रा में लगातार हो रही गिरावट
- जानलेवा बिजली कही भी और कभी भी पृथ्वी पर गिर लोगों की जान ले रही
- बच्चे समय से पहले हो रहे जवान और वृद्ध
- प्रति दिन नए-नए जानलेवा बिमारियों का आना
- जलवायु परिवर्तन के कारन तापमान का बढ़ना और समुद्र में जल स्तर का बढ़ना
- ओजोन की परत का टूटना, जिससे सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों का पृथ्वी पर आना
- …
यह सभी उसी संकेत के तरफ इशारा कर रही है, आने वाले समय में यह समस्याएं और भी उग्र रूप लेंगी, लोग भूखमरी से मरेंगे, उनकी लम्बाई में आएगी भरी गिरावट, …
क्या जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण सम्बंधित समस्याओं का निदान कर सकती है?