विचार

क्या जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण सम्बंधित समस्याओं का निदान कर सकती है?

रुझान में चल रहे जनसंख्यां वृद्धि की समस्या के पीछे की सच्चाई तो यह है की अगर विश्व की जनसंख्यां दोगुनी भी हो जाये तो हमारी पृथ्वी के लिए कोई समस्या नहीं है पर आज की पीढ़ी पूरी तरह से भोगी हो चुके हैं और अलग अलग तरीकों से प्रकृति को नुक्सान पहुंचा रहे हैं इसलिए जनसंख्यां नियंत्रण समस्या का समाधान नहीं है।

इसके साथ ही पूरे विश्व में हो रहे तथाकथित विकाश पृथ्वी और पूरी प्रकृति के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रही। किसी भी प्रकार के विकास को सफल तभी माना जा सकता जब उसे पृथ्वी, जल, तेज, वायु, और आकाश को ध्यान में रख कर किये जाएं।

आज हमारे चारों ओर हो रहे विकाश, इनमे से एक को भी ध्यान में रख कर नहीं किया जा रहा जो प्रकृति को सिर्फ और सिर्फ क्षति पहुंचा रही और हमारे भविष्य के लिए खतरे उत्तप्पन कर रही।

हमे इसके मूल वजहों को समझ उसपर कार्य करने की आवश्यकता है पर विडंबना यह है की कोई भी औद्योगीकरण, अनावश्यक अनुसंधान एवं आविष्कार अथवा अन्य प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों से होने वाले आर्थिक लाभ के कारण तथ्यों पर बात ही नहीं करना चाहते।

हमारे पूर्वजों के पास सभी प्रकार के विज्ञान का ज्ञान था पर उन्होंने प्रकृति रक्षण और अपनी आने वाली पीढ़ियों को ध्यान में रखते हुए ऐसा नहीं किया, उन्होंने पृथ्वी को सदैव माता के रूप में उनकी पूजा एवं रक्षण ही किया है। पर उनके उस ज्ञान को गलत रूप में इस्तेमाल कर आज विश्व में संसाधनों पर एकाधिकार जमाये लोगों ने हमारे भविष्य को खतरे में डाला है।

प्रकृति एक हद तक ही सब सहन कर सकती है पर जब सर से ऊपर जाता है तो वो भी अपने आप को व्यवस्थित करने का प्रयास करती है।

जब समझदार मानव अपनी आँखों के सामने हो रहे अन्याय, प्रकृति के साथ छेड़-छाड़, महायंत्रों का अनुचित एवं प्रचुर आविष्कार एवं प्रयोग के खिलाफ अपने दायुत्व का निर्वाहन नहीं करता तब प्रकृति अपनी भूमिका निभाती है और फिर नुक्सान अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोगों के होते हैं।

मनुस्मृति का उदघोष है, “महायंत्र प्रवर्तनम्” अर्थात, विश्व का अगर विनाश करन‍ा हो तो महायंत्रो का प्रचुर आविष्कार और उपयोग किजिये!

प्रकृति, प्राकृतिक विप्लव और दैविये प्रक्रोप के जरिये सब ठीक करने में समर्थ है और ऐसा समय-समय पर होता भी रहा है। प्रकृति भगवान् की शक्ति है, प्रकृति के परिकर हैं: पृथ्वी, जल, तेज, वायु, और आकाश। आज ये सभी अपनी संतुलन खोते जा रहे हैं जो हमारे भविष्य के लिए बड़े खतरे के संकेत हैं।

आने वाले समय में प्रकृति में बदलाव हमें कुछ इस रूप में देखने को मिलेंगे:

  • संयुक्त परिवार का विलोप होगा
  • संयुक्त परिवार के विलुप्त होने पर कुल धर्म, कुलाचार, कुलवधू, कुलदेवी, कुलदेवता, कुलगुरू, वर्ण व्यवस्था – इन सब का विलोप होगा
  • बढ़ते पानी के तापमान
  • पिघलते ग्लेशियर से लगातार बढ़ने लगेंगे समुद्र का जलस्तर
  • गर्मी की उठती तेज लहरें
  • समुद्र में ज्वार
  • बवंडर
  • चक्रवात
  • बादल का फटना
  • पृथ्वी पर बिजली का गिरना
  • ज्वालामुखी का फटना
  • भूकंप
  • ऋतुओं में गड़बड़ी
  • भूमिगत जल स्तर का गिरना
  • सूखा
  • बाढ़
  • अनाज का कम उत्पादन
  • फल सब्जियों की उपज में कमी, …

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